रामनगर-आज विश्व पैंगोलिन दिवस पर विशेष खबर।।

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रामनगर- आज विश्व पैंगोलिन दिवस पर कॉर्बेट में गहरे-भूरे, पीले-भूरे या रेतीले रंग का शुंडाकार जीव पैंगोलिन पाया जाता है। शरीर पर शल्क होने के कारण इसे ‘वज्रशल्क’ नाम से भी जाना जाता है और कीड़े-मकोड़े खाने से इसको ‘चींटीखोर’ भी कहते हैं।


इसे सल्लू सांप भी कहते हैं और इसके दांत नहीं होते, वहीं पिछला हिस्सा चपटाकार होता है। किसी खतरे को भांपकर सल्लू सांप अपनी रक्षा के लिए गेंद की तरह बनकर लुढ़कता है। इसकी मांसपेशियां इतनी मजबूत होती हैं कि लिपटे हुए सल्लू सांप को सीधा करना बड़ा कठिन होता है।
लेकिन अफ़सोस की बात यह है कि, पैंगोलिन प्रजाति का अस्तित्व अब खतरे में है।
यह जीव संकटग्रस्त प्रजाति में शामिल है। इसे बचाने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। लेकिन, शिकारियों पर शिकंजा न कसे जाने के कारण सल्लू सांप पर ज़बरदस्त खतरा मंडरा रहा है।वन्यजीव विशेषज्ञ संजय छिमवाल बताते है कि इस सांप की प्रजाति विलुप्त हो रही है। इसकी खाल की दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में भारी डिमांड है। इसकी परतदार खाल का इस्तेमाल शक्ति वर्धक दवा, बुलेट प्रूफ जैकेट, कपड़े और सजावट के सामान के लिए किया जाता है।
अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ द्वारा इसे संकटग्रस्त घोषित करते हुए इसके संरक्षण की आवश्यकता बताई गई। साथ ही भारतीय वन्यजीव अधिनियम 1972 के तहत पैंगोलिन को सुरक्षा प्रदान की गई है। इस कड़ी में विभिन्न संस्थाएं लोगों को यह संदेश देने का प्रयास करती रहती हैं कि पैंगोलिन का जैवविविधता में महत्वपूर्ण स्थान है।
सल्लू सांप जलीय स्त्रोतों के आसपास जमीन में बिल बनाकर एकाकी जीवन बिताते हैं और चींटी और दीमक को खाते हैं। ये रात्रिचर होते हैं और दिखने में बहुत ही दुर्लभ हैं।