स्मृति दिवस पर याद किये गए जनकवि गिर्दा।।

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चन्द्रशेखर जोशी
उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध जनकवि गिरीश तिवारी”गिर्दा”को आज उनकी पुण्य तिथि पर याद किया गया।रचनात्मक शिक्षक मण्डल द्वारा स्कूली बच्चों के लिए बनाए गए व्हाट्सएप्प ग्रुप जश्न ए बचपन में बच्चों द्वारा गिर्दा की कविताओं के पोस्टर बनाये गए।कार्यक्रम की शुरुआत ढेला,रामनगर के बच्चों जी सांस्कृतिक टीम के सदस्य ज्योति फर्त्याल,प्राची बंगारी,हिमानी बंगारी,खुशी बिष्ट,आकांक्षा सुंदरियाल द्वारा गिर्दा के गीत सांवनी सांझ आकाश खुला है,दीगो ये लाली की संगीतमय प्रस्तुति की गयी।डी एस बी नैनीताल में इतिहास विभाग से जुड़े डॉ बी सी शर्मा ने भी गिर्दा के गीतों के पोस्टर बना बच्चों को उत्साहित किया।ग्रुप संचालक नवेंदु मठपाल ने गिर्दा के जीवन के विभिन्न्न पहलुओं पर जानकारी देते हुए बताया कि गिरीश चंद्र तिवारी “गिर्दा” उत्तराखंड राज्य के एक बहुचर्चित पटकथा लेखक, निर्देशक, गीतकार, गायक, कवि, संस्कृति एवं प्रकृति प्रेमी, साहित्यकार और आंदोलनकारी थे। गिरीश चंद्र तिवारी उर्फ़ ‘गिर्दा’ को उत्तराखंड में ‘जनगीतों का नायक’ भी कहा जाता है।गिरीश चंद्र तिवारी “ गिर्दा” का जन्म 9 सितम्बर 1945 को अल्मोड़ा जनपद के ज्योलि गाँव में हुआ था। गिर्दा के पिता का नाम हंसा दत्त तिवारी तथा माता का नाम जीवन्ती देवी था। गिर्दा ने अपनी प्रारंभिक परीक्षा अल्मोड़ा में ही संपन्न की।

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युवा अवस्था में वह रोजगार की तलाश में पीलीभीत, अलीगढ तथा लखनऊ आदि शहरों में रहे। लखनऊ में बिजली विभाग तथा लोकनिर्माण विभाग आदि में नौकरी करने के कुछ समय पश्चात ही गिर्दा को वर्ष 1967 में गीत और नाटक विभाग, लखनऊ में स्थायी नौकरी मिल गयी।।युवा रचनाकारों के सानिध्य में गिर्दा की प्रतिभा में निखार आया और उन्होंने कई नाटकों की प्रस्तुतियाँ तैयार की जिनमें गंगाधर, होली, मोहिल माटी, राम, कृष्ण आदि नृत्य नाटिकाएँ प्रमुख हैं। गिर्दा ने दुर्गेश पंत के साथ मिलकर वर्ष 1968 में कुमाउँनी कविताओं का संग्रह ‘शिखरों के स्वर’ प्रकाशित किया। जिसका दुसरा संस्करण वर्ष 2009 में ‘पहाड़’ संस्था द्वारा प्रकाशित किया गया है। गिर्दा ने कई कविताओं और गीतों की धुनें भी तैयार की।
गिर्दा ने नाटकों के निर्देशन में भी अपना हाथ आजमाया और ‘नगाड़े खामोश हैं, धनुष यज्ञ, अंधायुग, अंधेर नगरी चौपट राजा’ आदि नाटकों का सफल निर्देशन किया। नगाड़े खामोश हैं और धनुष यज्ञ स्वयं गिर्दा द्वारा रचित नाटक हैं।इसी दौरान वनों की अंधाधुंध कटाई को रोकने के लिए चलाये गए ‘चिपको आंदोलन’ ने पुरे विश्व का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया, गिर्दा भी अपने आप को इस जनांदोलन से न रोक सके और इस आंदोलन में एक जनकवि के रूप में कुद पड़े पेड़ो की अंधाधुंध कटाई और नीलामी की विरोध में लोगों को जागरूक करने और एकजुट करने के लिए गिर्दा कई गीतों की रचना की ।गिर्दा ने उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन और नदी बचाओ आंदोलनों में भी अपने गीतों द्वारा सक्रियता दिखाई, उनके गीतों ने जनजागरूकता फैलाई और इन्हें एक बड़ा जनांदोलन बनाने में सहायता की। गिर्दा ने अपने जीवन में समय समय पर वन, शराब एवं राज्य आंदोलन को अपने गीतों तथा आवाज से जीवंत किया था।प्रसिद्ध लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी के साथ की गई गिर्दा की जुगलबंदी ने देश में ही नहीं अपितु विदेशों में भी ख्याति दिलाई।
गिरीश चंद्र तिवारी ‘गिर्दा’ की मृत्यु 22 अगस्त 2010 को हुई।राज्य निर्माण से ठीक पहले उनका लिखा गीत “कस होलो उत्तराखण्ड, कां होली राजधानी,
राग-बागी यों आजि करला आपुणि मनमानी,
यो बतौक खुली-खुलास गैरसैंण करुंलो।

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हम लड़्ते रयां भुली, हम लड़्ते रुंल॥”ने बहुत प्रसिद्धि पाई।उनके गीत कैसा हो स्कूल हमारा को उत्तराखण्ड शिक्षा विभाग ने अपना विभागीय गीत बनाया है।महेश पुनेठा द्वारा गिर्दा की कविताओं व उनके कवि कर्म पर विस्तार से जानकारी दी गयी।बी बी सी संवाददाता रोहित जोशी ने कहा दरअसल गिर्दा सिर्फ कवि नहीं थे, वे जनकवि थे। उनके पास सिर्फ पाठक नहीं थे, स्रोता भी थे जो उन्हें उनकी आवाज में ही सुनते समझते थे। उनके गीत, उनकी कवितायें उनके पूरे-पूरे एहसास के लिए नाकाफी हैं राजकीय इंटर कालेज ढेला के बच्चों के बीच भी ऑन लाइन गिर्दा के गीतों के पोस्टर बनाओ प्रतियोगिता आयोजित की गई।जिसमें वंश अधिकारी,नवीन करगेती,संजना बिष्ट,ईशा बिष्ट,तान्या अधिकारी ने बाजी मारी।