नैनीताल में रात को आसमान में चमकीली वस्तु दिखने की चर्चा, संशय में वैज्ञानिक

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नैनीताल। कॉर्बेट हलचल
नैनीताल में बुधवार शाम आकाश में पश्चिम दिशा में उड़नतश्तरी जैसी एक चमकीली वस्तु देखे जाने की चर्चा है। कहा जा रहा है कि कुछ देर बाद यह वस्तु ओझल भी हो गई। फुटबाल के आकार की यह वस्तु एक अनिश्चित मार्ग पर यात्रा करती नजर आई। सूर्य की ही दिशा में होने के बावजूद यह काफी चमकदार नजर आ रही थी।


किसी खगोल संस्थान का नहीं
आर्य भट्ट शोध एवं प्रेक्षण विज्ञान संस्थान (एरीज) के वैज्ञानिक डॉ. ब्रजेश कुमार ने बताया कि उन्होंने गूगल सहित विभिन्न स्रोतों से जानकारी ली, लेकिन किसी भी विज्ञान अध्ययन संस्थान की ओर से ऐसा कोई ऑब्जेक्ट आकाश में नहीं छोड़ने की पुष्टि हुई।

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यूएफओ या फिर जासूसी ऑब्जेक्ट संभव: वैज्ञानिक
डॉ. ब्रजेश ने बताया कि विभिन्न विकल्पों और संभावनाओं पर गहन विचार के बाद उनका निश्चित मत है कि यह पहचान योग्य वस्तु नहीं थी जिसे यूएफओ की श्रेणी में रखा जा सकता है। इसके किसी देश की ओर से जासूसी के लिए छोड़ा गया ऑब्जेक्ट होने की भी संभावना हो सकती है।


व्यापक पड़ताल और गहन ट्रैकिंग जरूरी
उन्होंने बताया कि यह वस्तु अक्तूबर 2013 में बेल्फास्ट और 19 अप्रैल 2015 और चार अप्रैल 2016 को टेक्सास में देखे गए यूएफओ जैसी नजर आ रही थी। डॉ. ब्रजेश के अनुसार ऐसी वस्तु का देखा जाना आश्चर्यजनक होने के साथ ही खतरे का सबब भी है जिसकी व्यापक पड़ताल, गहन जांच व ट्रैकिंग आवश्यक है।

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क्या होते हैं यूएफओ
यूएफओ या उड़न तश्तरी ऐसी वस्तुओं को कहा जाता है जिनके बारे में वैज्ञानिकों के पास कोई जानकारी नहीं होती कि वे क्या हैं। आकाश में हजारों प्रकार के ऑब्जेक्ट्स (वस्तुएं)  होते हैं जिनमें चांद-सितारों के अलावा मनुष्य निर्मित सैटेलाइट, मौसम और अन्य विषयों के सर्वेक्षण के लिए छोड़े गए गुब्बारे व उपकरण अथवा किसी पिंड से टूटे हुए भाग हो सकते हैं। किसी संस्थान की ओर से छोड़े उपकरणों की जानकारी अन्य वैज्ञानिक संस्थाओं व संबंधित देशों को रहती ताकि वे इनमें हस्तक्षेप न करें। जब कोई उपकरण इन श्रेणियों में नहीं होता तो वह यूएफओ कहलाता है। आम तौर पर हर वर्ष ऐसी वस्तुएं विश्व में कहीं नजर आ जाती हैं जिनके बारे में वैज्ञानिकों को पुष्ट रूप से जानकारी नहीं होती।

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वैज्ञानिक बोले…..
नगर से बाहर होने के कारण मैं खुद इस ऑब्जेक्ट ही नहीं देख पाया हूं। एरीज के टेलीस्कोप में भी यह रिकॉर्ड नहीं हुआ क्योंकि उस वक्त ये टेलीस्कोप खुले नहीं थे।
-डॉ. ब्रजेश कुमार, वैज्ञानिक, एरीज

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