उत्तराखंड में पंचायत चुनाव फिलहाल नहीं, हाईकोर्ट की रोक में कोई बदलाव नहीं

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उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर जारी विवाद पर राज्य हाईकोर्ट में सुनवाई बुधवार को भी जारी रही। चुनाव में आरक्षण रोस्टर निर्धारण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ में दोपहर बाद करीब दो घंटे तक बहस हुई। समय की कमी के चलते कोर्ट ने सुनवाई को 26 जून, गुरुवार तक के लिए स्थगित कर दिया है और तब तक चुनाव प्रक्रिया पर रोक भी बरकरार रहेगी।

सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह चुनाव प्रक्रिया रुकवाने के पक्ष में नहीं है, बल्कि चुनाव संविधान और कानून के अनुसार होने चाहिए। अदालत ने सरकार से यह भी सवाल किया कि कितनी सीटों पर आरक्षण रोस्टर की पुनरावृत्ति हुई है, और क्या यह पंचायती राज अधिनियम व संविधान के अनुच्छेद 243-टी का उल्लंघन नहीं है?

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राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता और मुख्य स्थायी अधिवक्ता ने कोर्ट में पक्ष रखते हुए कहा कि पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट के आधार पर पूर्ववर्ती आरक्षण रोस्टर को शून्य घोषित करना अनिवार्य हो गया था। 9 जून को तैयार नई आरक्षण नियमावली को 14 जून को राजकीय गजट में प्रकाशित किया गया।

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वहीं, याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी गई कि राज्य सरकार का यह निर्णय उत्तराखंड पंचायत राज अधिनियम 2016 और संविधान के अनुच्छेद 243-टी का सीधा उल्लंघन है। उन्होंने कोर्ट में यह भी कहा कि आरक्षण रोस्टर की निरंतरता और पारदर्शिता संवैधानिक बाध्यता है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

याचिकाकर्ता गणेश कांडपाल (बागेश्वर) और अन्य ने 9 और 11 जून को जारी की गई नियमावलियों को चुनौती देते हुए कहा कि नए आरक्षण रोस्टर को पहली बार वर्तमान चुनाव में लागू करना तर्कसंगत नहीं है। वहीं यह सवाल भी उठ रहा है कि 14 जून को गजट नोटिफिकेशन जारी होने के बावजूद, सचिवालय और अन्य सरकारी संस्थाओं को इसकी जानकारी क्यों नहीं थी?

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इस मामले में हाईकोर्ट की एकलपीठ में दाखिल 15 से अधिक याचिकाएं भी अब खंडपीठ को सौंप दी गई हैं। अब सभी याचिकाओं पर संयुक्त रूप से 26 जून को सुनवाई की जाएगी। इस कानूनी खींचतान के बीच पंचायत चुनाव को लेकर राजनीतिक और सामाजिक चर्चाएं तेज हो गई हैं।

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