राजस्व पुलिस खत्म करने का आदेश क्यों नहीं माना : हाईकोर्ट

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सुनवाई…

दो जजों की खंडपीठ ने मुख्य सचिव से मांगा जवाब

तीन हफ्ते में शपथ पत्र संग कोर्ट में पेश होने के निर्देश

नैनीताल। कॉर्बेट हलचल

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य में राजस्व पुलिस व्यवस्था को खत्म करने को लेकर मुख्य सचिव से जवाब मांगा है। कोर्ट ने मुख्य सचिव को व्यक्तिगत शपथपत्र के साथ तीन सप्ताह के भीतर कोर्ट में पेश करने का निर्देश दिया है।

अंकिता भंडारी हत्याकांड के बाद उत्तराखंड में राजस्व पुलिस की व्यवस्था समाप्त करने को लेकर फिर से दायर जनहित याचिका पर हाईकोर्ट ने बुधवार को सुनवाई की। इस मामले में मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने मुख्य सचिव को तीन सप्ताह के भीतर व्यक्तिगत शपथ पत्र पेश करने के निर्देश दिए हैं।

कोर्ट ने मुख्य सचिव को शपथ पत्र में यह भी बताने को कहा है कि वर्ष 2018 में इसी संबंध में उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय का क्या हुआ? उक्त आदेश में राज्य में छह महीने के भीतर राजस्व पुलिस व्यवस्था समाप्त कर अपराधों की विवेचना सिविल पुलिस को सौंपने को कहा गया था।

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देहरादून की संस्था ने दायर की थी याचिका

देहरादून की एक संस्था ने बुधवार को हाईकोर्ट में राजस्व पुलिस व्यवस्था समाप्त करने को लेकर एक जनहित याचिका दायर की। याचिकाकर्ता ने कहा कि अगर राज्य सरकार ने अदालत के आदेश का पालन किया होता तो अंकिता भंडारी मर्डर केस की जांच में इतनी देरी नहीं होती। ऐसे में राजस्व पुलिस व्यवस्था को समाप्त किया जाए।

2018 में दिया था निर्देश

याची के अनुसार उच्च न्यायालय ने 13 जनवरी 2018 को सरकार को निर्देश दिए थे कि उत्तराखंड में लागू 157 वर्ष पुरानी राजस्व पुलिस व्यवस्था, छह महीने के भीतर समाप्त कर अपराधों की विवेचना का काम सिविल पुलिस को सौंप दिया जाए।

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देहरादून की संस्था ने दायर की थी याचिका

देहरादून की एक संस्था ने बुधवार को हाईकोर्ट में राजस्व पुलिस व्यवस्था समाप्त करने को लेकर एक जनहित याचिका दायर की। याचिकाकर्ता ने कहा कि अगर राज्य सरकार ने अदालत के आदेश का पालन किया होता तो अंकिता भंडारी मर्डर केस की जांच में इतनी देरी नहीं होती। ऐसे में राजस्व पुलिस व्यवस्था को समाप्त किया जाए।

2018 में दिया था निर्देश
याचिकाकर्ता का कहना है कि उच्च न्यायालय ने 13 जनवरी 2018 को सरकार को निर्देश दिए थे कि उत्तराखंड में लागू 157 वर्ष पुरानी राजस्व पुलिस व्यवस्था, छह महीने के भीतर समाप्त कर अपराधों की विवेचना का काम सिविल पुलिस को सौंप दिया जाए।


2004 में भी खत्म करने की जरूरत महसूस हुई थी
इससे पूर्व वर्ष 2004 में सुप्रीम कोर्ट में नवीन चन्द्र बनाम राज्य सरकार केस में भी इस व्यवस्था को समाप्त करने की आवश्यकता समझी गई थी। उस समय कहा गया था कि राजस्व पुलिस को सिविल पुलिस की भांति ट्रेनिंग नहीं मिलती। साथ ही राजस्व पुलिस के पास आधुनिक साधन, कंप्यूटर, डीएनए और रक्त परीक्षण, फॉरेंसिक जांच तथा फिंगरप्रिंट जैसी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं होती हैं। इन सुविधाओं के अभाव में अपराध की समीक्षा करने में परेशानियां होती हैं। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्य में एक समान कानून व्यवस्था हो, जो नागरिकों को मिलनी चाहिए।

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चार साल पहले हाईकोर्ट ने दिए थे यह आदेश
● छह महीने में राज्य में थानों की संख्या और सुविधाएं उपलब्ध कराएं।
राजस्व पुलिस प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज नहीं करेगी और अपराधों की जांच सिविल पुलिस करेगी।

● जनसंख्या के अनुपात में थानों की संख्या बढ़ाई जाए।

● एक पुलिस सर्किल में दो थाने बनाए जाएं।

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