चन्द्रशेखर जोशी
रामनगर-देश की आजादी के खातिर भगतसिंह के साथ फांसी का फंदा चूम लेने वाले राजगुरु को आज उनकी 115 वीं जयंती पर राजकीय इंटर कालेज ढेला में याद किया गया।कार्यक्रम की शुरुआत राजगुरु के चित्र पर माल्यार्पण से हुई।प्रार्थना स्थल पर आकांक्षा सुंदरियाल,खुशी बिष्ट,कोमल सत्यवली,वंश लोहनी की टीम ने सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है और मेरा रंग दे बसंती चोला प्रस्तुत किया।अंग्रेजी प्रवक्ता नवेंदु मठपाल ने बताया कि शिवराम हरि राजगुरु का जन्म 24 अगस्त १९०८ में पुणे जिला के खेडा गाँव में हुआ था।
वाराणसी में विद्याध्ययन करते हुए राजगुरु का सम्पर्क अनेक क्रान्तिकारियों से हुआ। चन्द्रशेखर आजाद से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उनकी पार्टी हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी से तत्काल जुड़ गये। चन्द्रशेखर आज़ाद, सरदार भगत सिंह और यतीन्द्रनाथ दास आदि क्रान्तिकारी इनके अभिन्न मित्र थे। राजगुरु एक अच्छे निशानेबाज भी थे। साण्डर्स का वध करने में इन्होंने भगत सिंह तथा सुखदेव का पूरा साथ दिया था ।
23 मार्च 1931 को इन्होंने भगत सिंह तथा सुखदेव के साथ लाहौर सेण्ट्रल जेल में फाँसी के तख्ते पर झूल कर अपने नाम को हिन्दुस्तान के अमर शहीदों की सूची में अहमियत के साथ दर्ज करा दिया। कला शिक्षक प्रदीप शर्मा के दिशा निर्देशन में बच्चों ने राजगुरू का चित्र बनाया।
अजय कुमार,संजय बिष्ट,मानसी करगेती, ममता बोरा,ज्योति,खुशी शर्मा ने चित्र बनाने में ईनाम पाया।राजगुरू पर दूरदर्शन द्वारा बनाई गई डॉक्यूमेंट्री भी देखी गई।इस मौके पर प्रधानाचार्य
श्रीराम यादव,मनोज जोशी,सी पी खाती,नवेंदु मठपाल,प्रदीप शर्मा,सुभाष गोला, बालकृष्ण चंद,जया बाफिला,पद्मा,उषां पवार मौजूद रहे।