निकाय चुनाव: धामी सरकार को मिली मजबूती, मंत्रियों और विधायकों की परफॉर्मेंस का होगा आंकलन

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उत्तराखंड में हुए निकाय चुनावों ने धामी सरकार के लिए राहत का संदेश दिया, लेकिन भाजपा के लिए यह उम्मीदों के मुकाबले संतोषजनक परिणाम साबित हुआ। भाजपा ने 100 निकायों के चुनाव में प्रमुख तौर पर अच्छा प्रदर्शन किया और सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। भाजपा ने 11 नगर निगमों में से 10, 43 नगर पालिकाओं में 17 और 46 नगर पंचायतों में 15 सीटों पर जीत हासिल की। वहीं, निर्दलीय प्रत्याशियों ने भी कड़ी टक्कर दी और कई सीटों पर सफलता प्राप्त की।

उत्तराखंड के छोटे निकाय चुनावों में मोदी मैजिक का भी असर देखने को मिला। इन परिणामों ने भाजपा को 2027 विधानसभा चुनावों के लिए एक मजबूत आधार प्रदान किया है।

उत्तराखंड में 11 नगर निगमों में से भाजपा ने 10 निगमों पर कब्जा किया, जबकि श्रीनगर नगर निगम में निर्दलीय प्रत्याशी आरती भंडारी ने जीत हासिल की। दिलचस्प यह था कि आरती भाजपा से टिकट मांग रही थीं, लेकिन पार्टी से टिकट न मिलने पर उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा और सफलता प्राप्त की। इस जीत से कांग्रेस का नगर निगम चुनाव में खाता भी नहीं खुल पाया।

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उत्तराखंड की 43 नगर पालिकाओं में भाजपा ने 17 सीटें जीतीं, कांग्रेस ने 12 सीटें जीतीं, और 14 सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशियों ने जीत हासिल की। देहरादून जिले में कांग्रेस ने विकासनगर सीट पर विजय प्राप्त की, जबकि अन्य सभी सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की।

उत्तराखंड के 46 नगर पंचायतों में निर्दलीय प्रत्याशियों ने 16 सीटें जीतीं, जबकि भाजपा और कांग्रेस दोनों ने 15-15 सीटों पर जीत हासिल की। यह चुनाव भाजपा और कांग्रेस के बीच ही नहीं, बल्कि निर्दलीय प्रत्याशियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण मुकाबला साबित हुआ।

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इस चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों के बागियों ने भी अपनी ताकत दिखाई। विशेषकर, श्रीनगर नगर निगम में भाजपा से टिकट न मिलने के बाद आरती भंडारी ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और विजय प्राप्त की। इसके अलावा, कई अन्य बागी प्रत्याशियों ने भी चुनाव में हिस्सा लिया और कुछ ने जीत हासिल की।

उत्तराखंड में कुल 1282 सभासदों के चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशियों ने सबसे ज्यादा सीटें जीतीं। निर्दलीयों ने 633 सीटों पर विजय प्राप्त की, जबकि भाजपा ने 435 और कांग्रेस ने 164 सीटों पर जीत दर्ज की।

चुनाव के दौरान मतदाता सूची में नाम गायब होने की कई शिकायतें सामने आईं। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को भी मतदान के बाद अपना नाम मतदाता सूची में मिला। इसके अलावा, मतगणना प्रक्रिया भी बहुत सुस्त रही, और देहरादून में परिणाम घोषित होने में 27 घंटे का समय लगा।

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भाजपा के कई नेताओं का प्रदर्शन इस चुनाव में उम्मीद से खराब रहा। राज्यसभा सांसद महेंद्र भट्ट और मंत्री धन सिंह रावत ने अपने-अपने क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया। चमोली में भाजपा को 10 निकायों में से केवल 2 सीटों पर जीत मिली, जबकि श्रीनगर नगर निगम में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा।

भाजपा के वरिष्ठ नेता बिशन सिंह चुफाल के क्षेत्र में भी कांग्रेस ने जीत दर्ज की। यह पहला मौका था जब भाजपा को इस क्षेत्र में हार का सामना करना पड़ा। पार्टी के भीतर अंतर्कलह और नेतृत्व में असहमति के कारण यह हार हुई, जो आगामी चुनावों के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है।

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