मथुरादत्त मठपाल की 81वीं जयंती पर हुए विभिन्न कार्यक्रम,कुमाउनी काव्य संग्रह ए गे बसंत बहार का विमोचन।।

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मथुरादत्त मठपाल की 81वीं जयंती पर हुए विभिन्न कार्यक्रम,कुमाउनी काव्य संग्रह ए गे बसंत बहार का विमोचन।।

कुमाउनी काव्य संग्रह ए गे बसंत बहार का विमोचन,हुआ बासंती काव्य समारोह।

साहित्य अकादमी प्राप्त कुमाउनी साहित्यकार मथुरादत्त मठपाल की 81वीं जयंती पर दो दिवसीय कार्यक्रम के पहले दिन आज कुमाउनी काव्य संग्रह ए गे बसंत बहार का विमोचन किया गया।इसका संपादन मठपाल जी ने किया।

इस कविता में कुमाऊनी कविता के 200 साल के 100 वरिष्ठ कवियों को समेटा गया है।इसमें गुमानी,शिवदत्त सती, गोरदा जेसे पुराने कवियों की कविता हैं तो सुमित्रानंदन पंत,शैलेश मटीयानी जेसे वरिष्ठ साहित्यकारों कविता है।

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60ऐसे कवियों की कविताएं भी हैं जो वर्तमान में कविताएं लिख रहे हैं।कार्यक्रम के दूसरे सत्र में बासंती काव्य समारोह के अंतर्गत उत्तराखंड में बोली जाने वाली विभिन्न बोलियों,भाषाओं के कवियों ने अपनी कविताएं सुनाई।

कुमाऊनी कवि और उनकी कविताएं जगदीश जोशी।
मेरे मोहन्नी जी घर ए रौ डॉक्टर गजेंद्र बटोही/ मधुशाला के द्वार पर भई संतन की भीर। बस इक प्याले से मिटे ह्रदय तन की पीर हेमंत जी/ कहते तो हो सभ्यता और संस्कृति में हम सबसे बड़े हैं एक बिटिया को घेरे कितने लोग खड़े हैं
डॉ अमिता प्रकाश / मत बोना मुझे किसी सुकोमल खेत की छाती पर हल चलाकर।

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दामोदर जोशी देवांश/ डाई डाई में एगो बसंत
डॉ प्रभा पंत/ वक्त के संग संग बदलेगी तस्वीर इस जमाने की, मिलते रहेंगे मतलब के मीत मिल
कर बिछड़ते जाएंगे।

देवकीनंदन भट्ट/ चिड़ियों को घर घर सौरास
डॉ दिवा भट्ट / गाड़ियों तुम जलो मकानों दुकानों तुम भी जलो।

दीपक भाकुनी/ एगे बसंत ऋतु एगे बहार
गोविंद बल्लभ / याद आजानी अपन गौं अपन पहाड़
बल्ली सिंह चीमा जी/ आदेश पर आदेश किया जाता है सिर्फ मेरा नहीं दुनिया का खुदा हो जैसे
विनायक जीवन जोशी सावन के गीत जबसे गाए जाने लगे हैं बादल गगन में आने लगे हैं नारायण सिंह बिष्ट/ जा तुम्हारे कर्ज़ मैं निसकनी
दीपांशु कुँवर / जब से आई सड़क मेरे गांव में, गांव तब से नहीं मेरे गांव में
डॉ प्रदीप उपाध्याय / बेई नि आई आज आले केबे , आस ले रई | आले मुख दिखाले त्यारा बाटे चैरेई।

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मथुरादत्त मठपाल ने अपने जीवित रहते कुमाउनी के 80 कथाकारों का गद्य साहित्य को सुवा काथ को संपादित किया था।आज उनकी मृत्यु के एक साल बाद कुमाउनी के सौ कवियों का कविता संग्रह प्रकाशित हो कर आ गया।इसका सारा काम वे पूरा कर छोड़ गए थे।

डा गिरीश पंत,हरिमोहन मोहन, हयात सिंह रावत,नंदिनी मठपाल,नवेंदु मठपाल मौजूद रहे।

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