हल्द्वानी। भाजपा ने स्पष्ट किया है कि देवभूमि उत्तराखंड में अवैध मजार या सरकारी भूमि पर किसी भी तरह का अतिक्रमण स्वीकार नहीं किया जाएगा। प्रदेश प्रवक्ता हेमंत द्विवेदी ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा इस विषय को गंभीरता से लिए जाने पर आभार व्यक्त करते हुए कहा कि पार्टी पूर्ण रूप से उनके साथ खड़ी है।
प्रदेश प्रवक्ता श्री हेमंत द्विवेदी ने बयान जारी करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा अवैध धार्मिक अतिक्रमणों पर की जा रही सख्त कार्रवाई उत्तराखंड के लिए बेहतर कल का निर्माण करेगी और राज्य अतिक्रमण मुक्त होगा। भाजपा प्रवक्ता हेमंत द्विवेदी ने चिंता जताते हुए कहा कि हमारे क्षेत्र के साथ साथ उत्तराखंड मे बहुत सी जगहों पर पिछले कुछ वर्षो से अचानक जंगलो, सड़क किनारे या सरकारी भूमि मे मज़ारे दिखाई दे रही हैं । जिनको हटाया जाना आवश्यक है।
हैरानी है कि सरकार द्वारा अवैध अतिक्रमण की जाँच में इन अधिकांश तथाकथित मजारों के नीचे किसी तरह के क़ोई इंसानी अवशेष नहीं मिले हैं । जो पूरी तरह से स्पष्ट करता है कि यह मजार अवैध कब्जे कर किसी षड्यंत्र के तहत बनाई गई हैं। श्री द्विवेदी ने कहा कि जिस कॉर्बेट नेशनल पार्क और आस पास के क्षेत्रों में बाघो की संख्या अधिक होनी चाहिए थी, वहां अचानक अवैध मजारों की संख्या अधिक हो गई है । यह निश्चित तौर पर यह दर्शाता है कि कांग्रेस तुष्टिकरण की राजनीति करती है और अपनी सरकारों में कुछ विशेष लोगों को खुश करने के लिए इस तरह के अतिक्रमण करवाती है।
कांग्रेस के छोटे बड़े सभी नेताओं का जानबूझकर सोशल मीडिया व अन्य माध्यमों में मजारों की तुलना मंदिरों से कर देवभूमि के अपमान की साजिश रच रहे है। कांग्रेस के लोग सनातनी संस्कृति के अपमान का कोई मौका नही छोड़ते हैं। जब इनकी सरकार केंद्र मे थी तो प्रभु श्री राम को काल्पनिक मानने का शपथ पत्र सुप्रीम कोर्ट तक मे प्रस्तुत कर देते हो और जिनके नेता हिन्दू देवी देवताओं के अपमान करने वालों को अपनी यात्राओं में साथ लेकर चलते हों, जिन्हें धर्म विशेष के लिए अलग शिक्षण संस्थान चाहिए, जिन्हें जुम्मे की नमाज के लिए छुट्टी चाहिए उनसे देवभूमि के आध्यात्मिक महत्व और धार्मिक-सांस्कृतिक पहचान के सम्मान की उम्मीद करना ही बेमानी है । लेकिन हमारी आपत्ति इस बात पर है कि कांग्रेस नेता वर्ग विशेष के अपने वोटबैंक को संतुष्ट करने के लिए सरकारी भूमि पर कब्जे कर बनाये मजारों की तुलना वनों में मौजूद पौराणिक मंदिरों से कर रहे हैं, यह सरासर निंदनीय है।