महिला दिवस की पूर्व संध्या पर महिलाओं से अपने मुद्दों पर एकजुटता का आह्वान…………

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रामनगर-अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्व संध्या पर सावित्रीबाई फुले सांयकालीन स्कूल पटरानी में हुए कार्यक्रम में महिलाओं से अपने मुद्दों पर एकजुटता का आह्वान
किया गया।कार्यक्रम की शुरुआत विवेक फ़ुलारा,खुशी बिष्ट,कोमल जलाल,सुमन आर्या की टीम ने इसलिए राह संघर्ष की हम चुनें और लस्का कमर बांधा गीत से हुई।

उपस्थित समुदाय को संबोधित करते हुए स्कूल संचालिका रिंकी आर्या ने कहा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की शुरुआत 1900 के दशक में हुई थी। 1908 में, 15,000 महिलाओं ने न्यूयॉर्क शहर में बेहतर कामकाजी परिस्थिति, उचित वेतन और वोट देने के अधिकार की मांग करते हुए एक मार्च निकाला। जिसके बाद पहला अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 19 मार्च 1911 को ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में मनाया गया था।

लेकिन 8 मार्च 1917 को रूसी महिलाओं के हड़ताल के बाद महिला दिवस की तारीख को बदलकर 8 मार्च कर दिया गया। तब से, 8 मार्च अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की वैश्विक तारीख बन गई । जिसके बाद साल 1975 में संयुक्त राष्ट्र ने आधिकारिक तौर पर इस दिन को 8 मार्च को मनाने की मान्यता दी।अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2025 मनाने के लिए हर साल एक थीम रखी जाती है।

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इस साल की थीम ‘तेजी से कार्रवाई करें’ निर्धारित की गई है। यह थीम महिलाओं के जीवन को बेहतर बनाने के लिए तेजी से प्रगति करने की अपील करती है। भोजनमाता संगठन की नेता जानकी देवी ने कहा बड़ी बड़ी घोषणाओं के बाद भी आजादी के इतने सालों बाद भी महिलाओं की स्थिति में कोई खाश सुधार नहीं हुआ।महिलाओं पर हिंसा आज भी बदस्तूर जारी है जिसके खिलाफ संगठनित हो करके ही मुकाबला किया जा सकता है।

महिलाओं ने पटरानी समेत अन्य ग्रामीण क्षेत्रों में बाघ के बढ़ते आतंक पर भी रोष व्यक्त किया,आरोप लगाया कि स्थानीय लोगों को बेवजह परेशान किया जाता है।
वक्ताओं ने कहा घरों के अन्दर महिलाओं द्वारा होनेवाले श्रम को आज भी समाज और सरकार ‘सेवा’ या ‘धर्म’ से ज्यादा कुछ नहीं मानते।आशा-आंगनवाडी-रसोइया इत्यादि स्कीम वर्कर्स को ‘वेतन’ की जगह ‘मानदेय/ प्रोत्साहन राशि’ के नाम पर कुछ – सौ रूपए पकड़ा दिए जाते हैं।

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हाल फिलहाल में बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब, गुजरात समेत सारे देश के अंदर चले स्कीम वर्कर्स के बहादुराना संघर्ष के बावजूद सरकार ‘45वें भारतीय श्रम सम्मेलन’ में पारित बिन्दुओ को लागू नहीं कर रही.
बिना हमारे श्रम के इस दुनिया में कुछ भी संभव नहीं, हमारे दिन-रात घर के अन्दर और बाहर मेहनत करने के बावजूद भी मौलिक अधिकारों से वंचित रखा जाता है, मजदूर का दर्जा तक नहीं दिया जाता.घरों के अन्दर महिलाओं द्वारा होनेवाले श्रम को आज भी समाज और सरकार ‘सेवा’ या ‘धर्म’ से ज्यादा कुछ नहीं मानते, आशा-आंगनवाडी-रसोइया इत्यादि स्कीम वर्कर्स को ‘वेतन’ की जगह ‘मानदेय/ प्रोत्साहन राशि’ के नाम पर कुछ – सौ रूपए पकड़ा दिए जाते हैं। सरकार ‘45वें भारतीय श्रम सम्मेलन’ में पारित बिन्दुओ को लागू नहीं कर रही।

श्रम कानूनों को ‘रिफार्म’ के नाम पर तेजी से ख़त्म किया जा रहा है। पक्के रोज़गार को ख़त्म किया जा रहा है।
महिला और पुरुष के वेतन में भारी असमानता को ठीक करने के लिए सरकार कुछ नहीं कर रही, फैक्ट्रियों व अन्य कार्यस्थलों में काम कर रही महिलाओं को लैंगिक भेदभाव का हर दिन सामना करना पड़ता है, ‘विशाखा दिशानिर्देश’ कहीं भी लागू होते दिखाई नहीं दे रहे।सभी नौकरियों-कार्यस्थलों में महिला मजदूरों की भागीदारी बढ़ाने एवं पुरुष व महिला कामगारों के बीच असमानता को दूर करने के लिए, बराबरी के अधिकार के लिए ठोस कदम तुरंत उठाए जाने चाहिए।

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सभी कार्यस्थलों पर लैंगिक भेदभाव व यौनिक हिंसा मुक्त वातावरण, विशाखा दिशानिर्देश लागू करने के लिए ‘सेल’ इत्यादि का गठन सुनिश्चित किया जाना चाहिए.
आशा-आंगनवाड़ी-रसोइया इत्यादि स्कीम वर्कर्स को सरकारी कर्मचारी का दर्ज़ा दो, पक्के कर्मचारी का दर्जा मिलने तक 26,000 रूपए मासिक वेतन व रोज़गार की गारंटी करो.
इस मौके पर शिक्षक मंडल संयोजक नवेंदु मठपाल,अनीता देवी,तुलसी देवी,भवानी देवी,चंद्रा देवी,देवकी देवी,दीपिका देवी,हरीश कुमार,मंजू देवी,मीनाक्षी देवी,हेमा देवी,लीला देवी , भागुली देवी मौजूद रहे।