चन्द्रशेखर जोशी
रामनगर:-स्कूली बच्चों के लिए रचनात्मक शिक्षक मंडल द्वारा आयोजित थियेटर कार्यशाला की दिल्ली से आई हुई प्रशिक्षक टीम ग्रामीण क्षेत्रों में संगीत संध्या का आयोजन कर रही है।इसी क्रम में पूछड़ी और सांवल्दे में जनगीत प्रस्तुत किए गए।
कार्यक्रम की शुरुआत आजादी के आंदोलन के 1857 हुए पहले गदर के गीत हम हैं इसके मालिक हिंदुस्तान हमारा से हुई।इस गीत को अज़ीमुल्ला खां ने लिखा था।उसके पश्चात हिंदी साहित्य के वरिष्ठ साहित्यकार नागार्जुन,वीरेन डंगवाल,मंगलेश डंगवाल,शैलेंद्र जैसे अनेकानेक साहित्यकारों के गीतों की संगीतमय प्रस्तुति कर शमां बांध दिया।
वर्तमान समाज की विसंगतियों को उजागर करती वीरेन डंगवाल की कविता हमारा समाज को सस्वर गाते टीम के सदस्यों ने कहा,” हमने यह कैसा समाज रच डाला है ,इसमें जो दमक रहा, शर्तिया काला है ,वह क़त्ल हो रहा, सरेआम चौराहे पर ,निर्दोष और सज्जन, जो भोला-भाला है “।
फिर उपस्थित दर्शकों से ही सवाल कर डाला,”कालेपन की वे संतानें हैं, बिछा रहीं जिन काली इच्छाओं की बिसात
वे अपने कालेपन से हमको घेर रहीं अपना काला जादू हैं हम पर फेर रहीं बोलो तो, कुछ करना भी है ,या काला शरबत पीते-पीते मरना है?
समाज की बेहतरी के लिए चल रहे संघर्ष के पक्ष में टीम ने गाया,” मशालें लेकर चलना,कि जब तक रात बाकी है
संभल कर हर कदम रखना,कि जबतक रात बाकी है”।प्रवासी मजदूर की अथाह मेहनत और दर्द को सामने लाते असमिया गीत चल रे मिनी आसाम जावे प्रस्तुत किया।हीरा सिंह राणा के प्रसिद्ध गीत।
लस्का कमर बांधा पर तो उपस्थित जनसमुदाय ने भी टीम के साथ स्वर मिला दिया। इस मौके पर अपनी बातचीत रखते हुए सांस्कृतिक टीम के मुखिया धनंजय ने कहा आज नई पीढ़ी को बड़े ही योजनाबद्ध तरीके से नशे व अपसंस्कृति की ओर धकेला जा रहा है।
इसका जवाब आजादी के आंदोलन के गीतों के साथ साथ जनपक्षीय सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन से ही दिया जा सकता है।मेहनतकश अवाम के पक्ष के गीत ही भारतीय समाज को सही दिशा दे सकते हैं।
सांस्कृतिक टीम में धनंजय, सचिन शर्मा, सुनपी बोरा,अंतरिक्ष शर्मा,नंदिनी ल्वन्या,प्राची बंगारी,हिमानी बंगारी,खुशी बिष्ट रहे।इस मौके पर सुमित कुमार,हेमा जोशी, नीरज फर्त्याल,महेश जोशीसाइस्ता, रूबीना, शमशाद, जाहिद हुसैन,गुंजन देवी, पूनम देवी, रिंकी देवी,गौरा देवी, मोहम्मद हबीब, रुखसाना मौजूद रहे।