जब शुंभ-निशुंभ-रक्तबीज से हारे देवता, तो यहां अवतरित हुई मां काली

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देवभूमि में कई ऐसे मंदिर अस्तित्व में हैं जिनका नाता कई पौराणिक कहानियों में हुआ है। आज हम आपको रुद्रप्रयाग जनपद में मां काली के प्रसिद्ध मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। कालीमठ मंदिर तन्त्र व साधनात्मक दृष्टिकोण से यह स्थान कामाख्या और ज्वालामुखी के सामान अत्यंत ही उच्च कोटि का है। कहा जाता है कि कालीमठ मंदिर के समीप मां ने रक्तबीज का वध किया था। रक्तबीज का रक्त जमीन पर ना पड़े, इसलिए महाकाली ने मुंह फैलाकर उसके रक्त को चाटना शुरू किया। रक्तबीज शिला नदी किनारे आज भी स्थित है। रक्तबीज के संहार के बाद काली मां यहां अंर्तध्‍यान हो गई थी।रुद्रप्रयाग के ऊखीमठ ब्‍लाक के केदारघाटी में गौरीकुंड हाईवे के पास स्थित प्रसिद्ध काली मां का मंदिर है।

भागवत कथा में लिखा है कि इसी क्षेत्र के मनसूना स्थान में दो बड़े बलशाली राक्षस शुंभ और निशुंभ रहते थे। इन दोनों राक्षसों ने जनता को सभी हदों तक प्रताड़ित किया। साथ ही कई निर्दोष लोगों को मार डाला। इसके बाद वे देवताओं को मारने के लिए उतारू हो गए। शुंभ-निशुंभ के भय से सभी देवताओं ने देवी की आराधना की। स्कंद पुराण के अंतर्गत केदारनाथ के 62 अध्याय में मां काली के इस मंदिर का वर्णन है। कालीमठ मंदिर से 8 किलोमीटर की खड़ी ऊंचाई पर ‘काली शिला’ स्थित है। यहां देवी काली के पैरों के निशान मौजूद हैं। यहां काली मां 12 वर्ष की कन्या के रूप में प्रकट हुई। इसके बाद देवी ने राक्षसों का संहार किया। मान्यता है कि उनके संहार के बाद काली मां इसी स्थान से अंर्तध्‍यान हो गईं। कालीमठ में काली मां का मंदिर

सिद्धपीठों में शामिल है। काली मां के दर्शन कर भक्तों की मनोकामना पूरी होती है। चैत्र व शारदीय नवरात्रों में यहां विशेष पूजा होती है। कालीमठ मंदिर का वर्णन स्कंद पुराण के अंतर्गत केदारखंड में उल्लेख मिलता है। साथ ही मार्कण्डेय पुराण व देवी भागवत महापुराण में भी कालीमठ मंदिर का वर्णन मिलता है। सिद्धपीठ कालीमठ में नवरात्रों में स्थानीय भक्तों के साथ ही देश-विदेश के भक्त बड़ी संख्या में पहुंचते हैं

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