तराई पश्चिमी वन प्रभाग में वन्य प्राणी सप्ताह 2023 का सुभारंभ, वनकर्मियों ने सीखे गिद्ध संरक्षण के गुर
सोमवार को तराई पश्चिमी एवं रामनगर वन प्रभाग में होगी गणना
इको टूरिज्म सेंटर चूनाखान में संयुक्त कार्यशाला का आयोजन
दर्द निवारक डाइक्लोफेनेक का दंश झेल रहे विलुप्तप्राय गिद्धों के संरक्षण के लिए कॉर्बेट फाउंडेशन ने तराई पश्चिमी एवं रामनगर वन प्रभाग के सहयोग से पहल की है। संस्था पहले दोनों वन प्रभागों में गिद्धों की मौजूदगी का डाटा जुटाएगी। रविवार को इको टूरिज्म सेंटर चूनाखान में दोनों वन प्रभागों के वनकर्मियों को गिद्ध संरक्षण के गुर सिखाए गए।
संस्था के उपनिदेशक डॉ हरेंद्र बर्गली ने कहा कि इन्सानों द्वारा जाने-अनजाने में इस्तेमाल की गई दर्द निवारक डाइक्लोफेनेक दवा के कारण गिद्धों की 95 फीसदी आबादी काल कवलित हो गई। अस्सी के दशक तक 4 करोड़ गिद्ध पिछले 20 सालों में 50 हजार तक सिमट कर रह गए हैं। तीन जिप्स प्रजातियों पर इसका सबसे घातक प्रभाव पड़ा है। पर्यावरण संरक्षण में गिद्ध महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए इन्हें बचाने के प्रयास किए जाने चाहिए।
प्रोजेक्ट ऑफिसर दीप्ति पटवाल एवं नेहा रैक्वाल ने कहा कि हमें लोगों को जागरूक करना होगा कि वे मवेशियों के लिए डाइक्लोफेनेक की जगह मेलॉक्सिकैम का इस्तेमाल करें। एसडीओ प्रदीप कुमार धौलाखंडी ने कहा कि वनकर्मियों को जंगल में मृत पड़े या फेंके गए मवेशियों की नियमित रूप से निगरानी करनी होगी। कार्यशाला में गिद्धों की विलुप्ति के सभी कारणों पर चर्चा करते हुए कारगर उपाय तलाशे गए। इस दौरान गिद्धों की पहचान एवं गणना के गुर भी सिखाए गए। दोनों वन प्रभागों के वनकर्मी सोमवार को सभी संभावित स्थानों में गिद्धों की गणना करेंगे। कार्यशाला में प्रशिक्षु एसडीओ आयशा बिष्ट, रेंजर ललित जोशी, ख्याली राम, लक्ष्मण सिंह मर्तोलिया, जेपी डिमरी, ललित कुमार, कृपाल बिष्ट, मुकेश जोशी, आरसी ध्यानी समेत डिप्टी रेंजर, वन दरोगा व वन रक्षक शामिल थे।