भागवतकथा, व्यथा को दूर करती है: डॉ. रामाचार्य

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चन्द्रशेखर जोशी

पीरुमदारा:-नैनादेवी मंदिर के प्रांगण में श्रीमद्भावत्कथा में अयोध्याधाम से पधारे कथाव्यास डॉ. रामाचार्य ने अपने सुमधुर कंठ से भक्तों को जिस माधुर्यता से महाराज शुकदेव व परीक्षित के संवाद को बताया वह अत्यन्त ह्रदयग्राही था|
उन्होंने महारास का वर्णन करते हुए कहा गोपियाँ जिस भाव से कृष्ण का स्मरण करती हैं वह धरती का प्रथम अशरीरी प्रेम है।

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वे आत्मातत्व हैं और परमात्मा में अपना अस्तित्व मिलाने की प्रसन्नता में नृत्यमग्न हैं।परमात्मा रूप कृष्ण समस्त गोपी के साथ लास्यमग्न(नृत्यरत) हैं।वस्तुत: भागवत जी का प्राणतत्व यही गोप व गोपियाँ हैं जो गोपेश्वर के वंशी की धुन सुनते ही यह अर्थ लगाती हैं कि वह बांका मुझे ही बुला रहा है।

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इस कथा में उद्धव बुद्धितत्व हैं जिन्हें अपने ज्ञान पर अभिमान हैं| तो गांव की भोली भाली गोपियाँ अपनी एकात्म भक्ति के प्रभाव से उनकी बोलती बंद कर देती हैं। आशय स्पष्ट है ईश्वर को पाना है तो प्रेम से, भक्ति से ही पाया जा सकता है। ज्ञान तो केवल अभिमान पैदा करता है।
भागवत जी की कथा समस्त व्यथाओं को दूर करती है।

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वह तो जल को चरणोदक ,जीवन को विवेक से आपूरित करने का इस कलिकाल में सर्वोत्तम साधन व साध्य दोनों है।

इस अवसर पर समस्त कथा प्रेमी क्षेत्रवासी तथा विशेष सहयोगियों में जसबिंदर चौधरी, जसबीर चौधरी, धर्मवीर , संतोष भाटिया, होशियार लाल भाटिया, संतोषकुमार तिवारी, सुरेश चौधरी उपस्थित थे।

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