शिक्षा की अलख जलाने को खाकी छोड़ शिक्षक बने पाण्डे ने खींची बड़ी लकीर

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रामनगर- शिक्षा के क्षेत्र में पतन की खबरों के बीच शहर के एक इण्टर कॉलेज के शिक्षक अन्य शिक्षकों के लिए मिसाल बने हुए हैं। कोविड के बाद से शुरू अपनी मुहिम के तहत यह शिक्षक विद्यालय समय के बाद बच्चों के घरों में जाकर उनके अभिभावकों के मिल बच्चे को पढ़ने के लिए और बच्चे के अभिभावकों को बच्चें को पढ़ाने के लिए प्रेरित करता है।

समाज को शिक्षित करने का जुनून लिए वर्तमान में एमपी हिन्दू इण्टर कॉलेज में प्रवक्ता मनोविज्ञान पद पर तैनात डॉ. प्रभाकर पाण्डेय नाम के यह शिक्षक असल में इससे पहले उत्तराखंड पुलिस सेवा में थे। पुलिस की नौकरी करने के दौरान स्कूली बच्चों को विद्यालय समय में बाहर घूमते देख मन में आता था कि काश कोई इन बच्चों को पढ़ाई का महत्व समझाता जिससे यह बच्चे स्कूल से भागने की बजाए स्कूल में पढ़ते।

स्कूल में पढ़ रहे बच्चों से उनके भविष्य के बारे में पूछने पर उनके निराशावादी विचारों को सुनकर सोचता कि काश इन सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को भी भविष्य में कुछ अच्छा करने के लिए इनका मार्गदर्शन किया जाता। पुलिस की नौकरी करने के दौरान इन्होने महसूस किया कि सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों में प्रतिभा की कमी नहीं है।

कमजोर मनोबल के कारण बच्चे प्रतिभावान होते हुए भी सहमे और घबराए हुए रहते हैं। इन बातों ने पाण्डे। पर ऐसा असर किया कि उन्होंने पुलिस विभाग छोड़कर बच्चों को शिक्षित करने और उनके टूटे हुए मनोबल को बढ़ाने का निर्णय लेते हुए अपने पीएचडी के अधूरे कार्य को पूरा कर मनोविज्ञान विषय में मानद उपाधि प्राप्त की।

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मनोविज्ञान विषय के लिए प्रवक्ता पद की विज्ञप्ति निकलने पर उसकी तैयारी में जुट गए। छः महीने में ही इनका प्रवक्ता मनोविज्ञान पद के लिए इंटरव्यू होने के बाद इनका चयन प्रवक्ता पद पर हो गया। नियुक्ति के तत्काल बाद से ही डॉ. प्रभाकर पाण्डेय अपने सपने को साकार करने में जुट गए। लेकिन छः महीने के बाद ही सड़क दुर्घटना में इनका दाहिना पांव गंभीर रूप से चोटिल हो गया। जिसका लगभग 3-4 साल तक लगातार उपचार चला। उपचार के दौरान पाण्डे को कई ऑपरेशनों का सामना करना पड़ा।

इन सब के बाद भी उन्हें दाहिने पांव से दिव्यांग होना पड़ा। जिससे इनके दौड़ने, बैठने और खेलने की शक्ति शीर्ण हो गई। परन्तु इतने बड़े हादसे का शिकार होने के बाद भी इन्होंने हार न मानते हुए और पूरी तन्मयता के साथ अपने कार्य में लग गए। इन्होंने अपने कार्य को ही शौक बना लिया और अपने स्कूली बच्चों को अपने बच्चों की तरह मानते हुए उनके सर्वांगीण विकास में लग गए। अपने विषय मनोविज्ञान का सदुपयोग करते हुए बच्चों को नवीन तरीकों से पढ़ाने और उनके व्यक्तित्व के विकास में लगे रहे।

2016 में पाण्डे की विशिष्ट सेवाओं को देखते हुए राज्य सरकार द्वारा पुरस्कार भी दिया गया। कोविड के दौरान जब स्कूल कॉलेज बंद हो गए तब भी इन्होंने बच्चों को पढ़ाना जारी रखा। कोविड में ड्यूटी के चलते भी इन्होंने ऑनलाइन शिक्षण के माध्यम से बच्चों को लगातार लाइव क्लास के माध्यम से पढ़ाते रहे। कोविड के बाद इन्होंने एक “पहल एक उम्मीद” योजना चलाई।

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जिसके माध्यम से स्कूल में शिक्षण कार्य के बाद अपने अतिरिक्त समय में बच्चों के घर-घर जाकर उनको मन लगाकर पढ़ने और अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए प्रेरित करते और साथ ही बच्चों की पढ़ाई में बेहतर परीक्षा परिणाम के लिए अविभावकों को भी प्रेरित करते है। पाण्डे की यह मुहीम 3-4 साल से लगातार जारी है। शहर के साथ साथ ग्रामीण क्षेत्र के लोग भी इनके इस कार्य की प्रशंसा करते रहते है। पाण्डे को 2024 में दक्ष दिव्यांग कर्मचारी राज्य स्तरीय पुरस्कार से देहरादून में सम्मानित किया जा चुका है।

साथ ही इनके इनके द्वारा “पहल एक उम्मीद” कार्यकम चलाकर छात्र-छात्राओं के घर-घर जाकर विद्यार्थियों को पढाई में अच्छे अंक लाने के लिए प्रेरित करने के लिए शिक्षा क्षेत्र में अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए मानपत्र दिया गया है। डॉ. प्रभाकर पाण्डेय तब से आज तक लगातार अपनी मुहिम में स्कूल समय के बाद बच्चों के घर जाकर बच्चों और उनके परिजनों से मिलते रहे है।

यह शिक्षक सिर्फ घर-घर जाने तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि इसके अलावा ग्रीष्मावकाश, शीतकालीन अवकाश और अन्य छुट्टियों में भी बच्चों को विद्यालय में अतिरिक्त कक्षा के माध्यम से पढ़ाते है। समय समय पर आवश्यकतानुसार ऑनलाइन शिक्षण पद्धति से भी बच्चों को पढ़ाते रहते है। जहां एक ओर सरकारी कर्मचारी अपने ड्यूटी समय में भी काम करने से कतराते है तो वहीं डॉ. प्रभाकर पाण्डेय ड्यूटी समाप्त करने के बाद अपने खाली समय में बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए अनेकों सराहनीय प्रयास करते है। इन सभी कार्यों को करने के कारण वह कभी कभी अपने परिवार, रिश्तेदारों व मित्रों को भी समय नहीं दे पाते है जिस कारण कभी कभी इनको अपने परिवारजनों व मित्रों की नाराज़गी का सामना करना पड़ता हैं।

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बच्चों के बीच आपसी टकराव की स्थिति में यह शिक्षक अकसर सड़क पर बच्चों के विवादों को सुलझाते दिखाई देते हैं। ऐसे बच्चे, जो विद्यालय समय में विद्यालय ना आकर इधर उधर घूमते रहते हैं उन बच्चों को यह अपने दुपहिया वाहन से शहर में घूम घूम कर बच्चों को समझा बुझाकर विद्यालय पढ़ने के लिए भी लाते है। शिक्षा के प्रति अपने इस जुनून के लिए पाण्डे छुट्टियां भी बहुत कम लेते है। 2024 में इन्होंने वर्ष भर में मिलने वाले 14 आकस्मिक अवकाशों में से सिर्फ 1 या 2 अवकाश लिए है।

लगातार बच्चों के लिए स्कूल समय के उपरांत और छुट्टियों में भी कुछ ना कुछ करते रहने के कारण यह रामनगर से बाहर भी नहीं जा पाते हैं। इन सबके अलावा भी यह शिक्षक बहुत सारे लोगों के लिए फिटनेस को लेकर भी प्रेरणा के ऐसे स्रोत हैं जो समय समय पर समाज को एक बेहतर स्वास्थ के लिए प्रेरित करते रहते है। एक पांव से दिव्यांग होते हुए भी वर्ष 2016 और 2023 में बॉडीबिल्डिंग प्रतियोगिता में प्रतिभाग कर इन्होंने प्रथम स्थान प्राप्त किया है। इतना ही नहीं, पाण्डे सामाजिक क्षेत्र में भी हमेशा लोगों को प्रोत्साहित करते हुए सामाजिक कार्यों में अपना सहयोग देकर समाज के कल्याण हेतु तत्पर रहते हैं।