आर्य समाज हल्द्वानी के तत्वावधान में श्रावणी उपाकर्म एवं वेद प्रचार कार्यक्रम गुरूवार प्रातः कालीन यज्ञ के साथ प्रारंभ हो गया। आचार्य विनोद आर्य ने पवित्र यज्ञ का प्रारंभ कराया। जिसमें कई दंपतियों ने यजमान बनकर आहुतियां प्रदान की। इसके बाद मुजफ्फरनगर से पधारे वैदिक भजनो पदेशक पंडित सतीश सुमन ने वैदिक भक्ति से भरे हुए भजनों की प्रस्तुति दी। जिसमें उन्होंने प्रभु की उपासना का संदेश दिया।
इस दौरान पंडित सुमन ने कहा कि वेद सबसे प्राचीन ग्रंथ हैं। महाभारत काल के बाद जिन्हें भूल गए थे उन्हें पुनः मानव मात्र के लिए प्रस्तुत करने वाले सन्त महर्षि दयानंद सरस्वती हैं। जिन्होंने वेदों का अध्ययन परम धर्म बताया है। इसके साथ ही उन्होंने प्रभु-भक्ति एवं राष्ट्रभक्ति के भजन प्रस्तुत किए। इस अवसर पर आर्य समाज हल्द्वानी के धर्माचार्य विनोद आर्य ने वैदिक यज्ञों की महिमा एवं वेद के संदेशों को सभी के कल्याण हेतु बताते हुए कहा कि वेद मानवता का संदेश देते हैं।
मानव धर्म को ही सबसे बड़ा धर्म बताते हैं। वेदों के अनुसार बने हुए समाज में कोई जाति- पांति, ऊंच-नीच की भावना नहीं रहती। सभी मनुष्य परमात्मा की संतान हैं। इतना ही नहीं अन्य सभी प्राणी भी परमात्मा की संतान हैं। इसीलिए सनातन धर्म में जीव दया एवं अहिंसा पर बहुत बल दिया गया है। आर्य समाज के संरक्षक पीएल आर्य ने वैदिक ऋषियों की चर्चा करते हुए आधुनिक युग के ऋषि महर्षि दयानंद सरस्वती का स्मरण करते हुए कहा कि आधुनिक युग में सच्चे शिव की खोज करने वाले महर्षि दयानंद सरस्वती हैं। जिन्होंने ईश्वर के नाम और पूजा पद्धतियों पर बिखरे हुए समाज को एक सूत्र में पिरोने का कार्य किया।
उन्होंने कहा कि उसे परमात्मा का मुख्य निज नाम ओ३म् है। शेष नाम गुणों के आधार पर हैं। इसलिए हम सभी को एक ओ३म् ध्वज के नीचे आकर एक ओ३म् की उपासना ही करनी चाहिए, जो पूरे मानव समाज का कल्याण करने वाला है। इस अवसर पर आर्य समाज के मंत्री हरीश चन्द्र पन्त, सुनील विनायक मुकेश खन्ना, राजकुमार राजोरिया, सोबरन शर्मा, ढाल कुमारी शर्मा, कृष्णा देवी, स्नेहा वर्मा, कमलेश भारद्वाज एवं सन्तोष भट्ट आदि उपस्थित रहे।