हिंदी में है विश्व की सबसे उपयोगी भाषा बनने के गुण
हिंदी दिवस पर विचार मंथन में वक्ताओं ने हिंदी को राष्ट्रभाषा और संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनाने पर दिया जोर
रामनगर।
हिंदी भाषा ने स्वतन्त्र समर में भारत को एक सूत्र में पिरोने में जिस तरह से अपनी भूमिका निभायी उसी तरह की भूमिका विश्व को एक सूत्र में बांधने में भी निभा सकती है। हिंदी भाषा की सहजता और सरलता तथा देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता पर पूरे विश्व के भाषाविदों में कोई मतभेद नही है।लेकिन जब तक हम सब भारतवासी हिंदी को सामान्य व्यवहार में प्रयोग करने में गर्व का अनुभव नही करेंगे तब तक विश्व में सम्मान नही प्राप्त नही होगा।
हिंदी दिवस के अवसर पर हिंदी साहित्य भारती(अंतरराष्ट्रीय) और सरोकार साहित्य संस्था द्वारा विचार गोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए प्रो0 गिरीश चंद्र पंत ने व्यक्त किये।
ईदगाह रोड स्थित होटल के सभागार में साहित्य भारती के जिलाध्यक्ष गणेश रावत की अध्यक्षता और डॉ0 अनुपम शुक्ल के संचालन में आयोजित गोष्ठी में विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार विनोद पपनै ने कहा कि भूमंडलीकरण और इंटरनेट ने हिंदी भाषा के प्रसार में मदद की है और बाजार में हिंदी भाषा झंडे गाड़ रही है।
उत्तराखंड विद्यालय शिक्षा परिषद के शोध अधिकारी डॉ0 रामचन्द्र पांडे ने कहा कि हिंदी का साहित्य विश्व का श्रेष्ठतम साहित्य है। डॉ0 शिवकांत शुक्ल ने कहा कि नई शिक्षा नीति में मातृभाषा में स्कूली पढ़ाई से हिंदी को बढ़ावा मिलेगा। डॉ0 महेश्वर बाजपेयी ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की वकालत की।
बिक्रीकर अधिकारी और युवा लेखक मितेश्वर आनंद ने हिंदी को नई पीढ़ी से जोड़ने और हिंदी भाषियों को हीनता बोध से उबरकर अन्य भाषाओं पर भी पकड़ बनाने की वकालत की। वक्ताओं ने हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनाने की पुरजोर वकालत की।
गोष्ठी में मोहन पाठक, यशपाल सिंह रावत, बृजेश भंडारी, देवेश उपध्याय, राजेन्द्र रावत, अमित नैनवाल, संदीप नेगी सहित अनेक हिंदी प्रेमी उपस्थित रहे।