धर्म परिवर्तन कराने का अधिकार किसी भी धार्मिक संस्था को नहीं : एमपी हाईकोर्ट

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फैसला

ग्वालियर खंडपीठ ने मुस्लिम लड़की के मतांतरण और विवाह को शून्य घोषित किया

अंतरधार्मिक विवाह का मामला, आर्य समाज मंदिर में हुआ था धर्म परिवर्तन और विवाह

ग्वालियर। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की ग्वालियर खंडपीठ ने धर्म परिवर्तन करके धार्मिक संस्थानों से मैरिज सर्टिफिकेट लेने के मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट के अनुसार किसी भी धार्मिक संस्था को युवक-युवती के धर्म परिवर्तन कराने का अधिकार नहीं है। विधिवत रूप से धर्म परिवर्तन कलेक्टर के यहां आवेदन देने के बाद ही हो सकता है।

धर्म परिवर्तन करके मुस्लिम से हिंदू बनी युवती के मामले में हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कहा है कि नारी निकेतन में रह रही इस लड़की को एक सप्ताह के भीतर वहां से आजाद किया जाए। चूंकि लड़की बालिग है इसलिए वह कहीं भी जाने के लिए स्वतंत्र है। यदि लड़की अपने माता-पिता के साथ जाने के लिए तैयार नहीं होती है तो वह अपने प्रेमी के साथ भी जा सकती है।

आर्य समाज मंदिर में मतांतरण और विवाह शून्य घोषित
ग्वालियर खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद स्थित आर्य समाज मंदिर में किए गए मुस्लिम लड़की के मतांतरण और विवाह को शून्य घोषित कर दिया है। साथ ही पुलिस अधीक्षक गाजियाबाद को आदेश दिया है कि मतांतरण कराकर विवाह प्रमाण पत्र जारी करने के मामले में जांच करें और कानूनी कार्रवाई की जाए। कोर्ट ने स्पष्ट टिप्पणी की है कि मतांतरण कराने का किसी संस्था को अधिकार नहीं है जो कानून लागू है उसके तहत ही मतांतरण किया जा सकता है।

जानिए क्या है पूरा मामला
यह पूरा मामला मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले का है जहां जिले के पिछोर में रहने वाले राहुल ने 17 सितंबर 2019 को घर से भागकर गाजियाबाद के कविनगर स्थित आर्य समाज मंदिर में लव मैरिज की थी, लड़की के पिता ने पिछोर थाने में गुमशुदगी दर्ज कराई थी। दोनों 2 साल बाद लौट कर आए और थाने में उपस्थित हुए, लेकिन लड़की के नाबालिग होने की वजह से राहुल पर दुष्कर्म का केस दर्ज कर उसे जेल भेज दिया गया, लड़की ने पिता के साथ जाने से मना किया तो अपर कलेक्टर ने उसे नारी निकेतन में भेज दिया, राहुल ने जमानत मिलने के बाद लड़की को पत्नी बताते हुए नारी निकेतन से मुक्त कराने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की और न्यायालय में कहा गया की उसने आर्य समाज मन्दिर में लड़की का धर्म परिवर्तन करवा कर उससे हिन्दू रीति रिवाज से शादी की है। जिस पर कोर्ट ने कहा कोई भी किसी का धर्म परिवर्तन नहीं करा सकता, न व्यक्ति और न ही संस्था। इसी आधार पर कोर्ट ने आरोपी द्वारा नाबालिग से किया गया विवाह शून्य घोषित कर दिया। वही याचिकाकर्ता के अधिवक्ता सुरेश अग्रवाल ने न्यायालय में तर्क दिया कि लड़की बाले गए उसे नारी निकेतन में नहीं रखा जा सकता ऐसे में कोर्ट ने उसे मुक्त करने का आदेश दिया है।

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