उत्तराखंड अब पूरी तरह से प्रशासकों के हवाले हो चुका है। पहले निकायों में और फिर क्षेत्र पंचायतों के बाद अब जिला पंचायतों में भी प्रशासक तैनात कर दिए गए हैं। हरिद्वार जिले को छोड़कर प्रदेश के 12 जिलों में ग्राम और क्षेत्र पंचायतों का कार्यकाल समाप्त हो चुका है। इसके परिणामस्वरूप पंचायती राज विभाग ने इन पंचायतों को प्रशासकों के सुपुर्द कर दिया था। पंचायती राज सचिव चंद्रेश यादव ने इस संदर्भ में 27 नवंबर को आदेश जारी किए थे। अब, एक दिसंबर को जिला पंचायत का कार्यकाल समाप्त हो रहा है, जिससे संबंधित विभाग ने जिला पंचायतों को भी प्रशासकों के हवाले कर दिया है। इस संबंध में पंचायती राज सचिव ने शनिवार को नए आदेश जारी किए हैं।
जारी आदेशों के अनुसार, पंचायतों का कार्यकाल उनकी पहली बैठक की तिथि से लेकर अधिकतम पांच वर्षों तक निर्धारित होता है। उत्तराखंड राज्य के सभी जिलों (हरिद्वार को छोड़कर) में नवंबर 2019 में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव कराए गए थे। चुनाव के बाद ग्राम पंचायतों की पहली बैठक 28 नवंबर 2019, क्षेत्र पंचायतों की पहली बैठक 30 नवंबर 2019, और जिला पंचायतों की पहली बैठक 2 दिसंबर 2019 को आयोजित हुई थी। हालांकि, त्रिस्तरीय पंचायतों का कार्यकाल समाप्त होने से पहले चुनाव नहीं कराए जा सके, जो अपरिहार्य परिस्थितियों के कारण हुआ।
अब, पंचायती राज विभाग ने जिला पंचायतों में प्रशासक नियुक्त कर दिए हैं। राज्यपाल ने उत्तराखंड पंचायती राज (संशोधन) अधिनियम, 2020 की धारा 130 की उपधारा 6 के तहत दी गई शक्तियों का उपयोग करते हुए प्रदेश के सभी जिला पंचायतों (हरिद्वार को छोड़कर) का कार्यकाल समाप्त होने के बाद जिलाधिकारी/जिला मजिस्ट्रेट को यह अधिकार दिया है कि वे संबंधित जिले के निवर्तमान जिला पंचायत अध्यक्ष को जिला पंचायत का प्रशासक नियुक्त करें। इसका मतलब है कि आगामी छह महीने तक या चुनाव होने तक जिला पंचायत अध्यक्ष ही प्रशासक के रूप में कार्य करेंगे।